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मू॒र्द्धानं॑ दि॒वोऽअ॑र॒तिं पृ॑थि॒व्या वैश्वान॒रमृ॒तऽआ जा॒तम॒ग्निम्। क॒विꣳ स॒म्राज॒मति॑थिं॒॑ जना॑नामा॒सन्ना पात्रं॑ जनयन्त दे॒वाः ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मू॒र्द्धान॑म्। दि॒वः। अ॒र॒तिम्। पृ॒थि॒व्याः। वै॒श्वा॒न॒रम्। ऋ॒ते। आ। जा॒तम्। अ॒ग्निम् ॥ क॒विम्। स॒म्राज॒मिति॑ स॒म्ऽराज॑म्। अति॑थिम्। जना॑नाम्। आ॒सन्। आ। पात्र॑म्। ज॒न॒य॒न्त॒। दे॒वाः ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (देवाः) विद्वान् लोग (दिवः) आकाश के (मूर्द्धानम्) उपरिभाग में सूर्यरूप से वर्त्तमान (पृथिव्याः) पृथिवी को (अरतिम्) प्राप्त होनेवाले (वैश्वानरम्) सब मनुष्यों के हितकारी (ऋते) यज्ञ के निमित्त (आ, जातम्) अच्छे प्रकार प्रकट हुए (कविम्) सर्वत्र दिखानेवाले (सम्राजम्) सम्यक् प्रकाशमान (जनानाम्) मनुष्यों के (अतिथिम्) अतिथि के तुल्य प्रथम भोजन का भाग लेनेवाले (पात्रम्) रक्षा के हेतु (आसन्) ईश्वर के मुखरूप सामर्थ्य में उत्पन्न हुए जो (अग्निम्) अग्नि को (आ, जनयन्त) अच्छे प्रकार प्रकट करें, वैसे तुम लोग भी इसको प्रकट करो ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग पृथिवी, जल, वायु और आकाश में व्याप्त विद्युद्रूप अग्नि को प्रकट कर यन्त्र कलादि द्वारा युक्ति से चलावें, वे किस किस कार्य को न सिद्ध करें ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(मूर्द्धानम्) शिरोवदुन्नतप्रदेशे सूर्यरूपेण वर्त्तमानम् (दिवः) आकाशस्य (अरतिम्) प्राप्तम् (पृथिव्याः) (वैश्वानरम्) विश्वेभ्यो नरेभ्यो हितम् (ऋते) यज्ञनिमित्तम् (आ) समन्तात् (जातम्) प्रादुर्भूतम् (अग्निम्) पावकम् (कविम्) क्रान्तदर्शकम् (सम्राजम्) यः सम्यग्राजते तम् (अतिथिम्) अतिथिवद्वर्त्तमानम् (जनानाम्) मनुष्याणाम् (आसन्) मुखे उत्पन्नम् (आ) समन्तात् (पात्रम्) पान्ति रक्षन्ति येन तम् (जनयन्त) प्रादुर्भावयेयुः (देवाः) विद्वांसः ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा देवा दिवो मूर्द्धानं पृथिव्या अरतिं वैश्वानरमृत आजातं कविं सम्राजं जनानामतिथिं पात्रमासन्नग्निमाजनयन्त तथा यूयमप्येनं प्रादुर्भावयत ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये पृथिव्यप्वाय्वाकाशेषु व्याप्तं विद्युदाख्यमग्निं प्रादुर्भाव्य यन्त्रादिभिर्युक्त्या चालयेयुस्ते किं किं कार्यं न साधयेयुः ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक पृथ्वी, जल, वायू व आकाश यात व्याप्त असलेली विद्युत (अग्नी) प्रकट करून यंत्रे इत्यादी युक्तीने चालवितात ते कोणतेही कार्य सिद्ध करू शकतात.